भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने 25 पर्वतीय फसलों की 200 विकसित प्रजातियां को विमोचित करने के लक्ष्य को छुआ
पद्मभूषण प्रोफेसर बोसी सेन द्वारा स्थापित भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, जिसको 1974 में पर्वतीय कृषि की उत्पादकता बढ़ाने व इसे टिकाऊ रखना को वैज्ञानिक आधार देने के लिए मूल तथा नीति विषयक अनुसंधानों के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा अपने एक संसथान के रूप में अंगीकृत किया गया। वर्तमान में यह संस्थान उत्तर-पश्चिमी हिमालय राज्यों अर्थात हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख के पर्वतीय क्षेत्र के लिए अनुसंधान कार्य कर रहा है। संस्थान द्वारा विकसित उन्नत प्रजातियां एवं तकनीकियां उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं।
हाल ही में 2 अगस्त 2024 को आयोजित कृषि फसल प्रजातियों के फसल मानक अधिसूचना विमोचन की केंद्रीय उप समिति की 92वीं बैठक के दौरान संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की आठ प्रजातियों (04 कदन्न एवं अल्प प्रयुक्त नामतः वी एल मंडुआ 402, वी एल मंडुआ 409, वी एल मादिरा 254, वी एल चुआ 140 , 03 उच्च गुणवत्ता युक्त मक्का नामतः वी एल शिखर, वी एल त्रिपोशी, वी एल पोषिका एवं 01 धान की प्रजाति वी एल बोसी धान ) का विमोचन एवं अधिसूचना हेतु अनुशंसा की गई है। इसके साथ ही अपनी 100 वर्ष की अनुसंधान यात्रा के दौरान संस्थान द्वारा विकसित एवं अधिसूचित प्रजातियों की संख्या 200 पहुंच गई है, जो संस्थान के इतिहास में मील का पत्थर है।
आशा है कि यह प्रजातियां पर्वतीय क्षेत्रों में जहां एक और पोषकता बढ़ाने में सहायक होगी, वहीं दूसरी ओर उत्तर पश्चिमी-पर्वतीय क्षेत्र की फसल उत्पादकता में भी वृद्धि करने में सक्षम होंगी।
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